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बसपा से बागी हुए पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने भले ही अपने पत्ते नहीं खोले हों लेकिन उनके प्रति भाजपा का रुख सकारात्मक है। उधर स्वामी प्रसाद आगामी एक जुलाई को प्रस्तावित कार्यकर्ता सम्मेलन सफल बनाने की कोशिश में जीजान से जुटे हैं क्योंकि सम्मेलन से ही उनका सियासी कद तय होगा।
बसपा के बगावत के बाद स्वामी प्रसाद को अपेक्षित समर्थन न मिलने से समर्थकों के बेचैनी है और एक राय नहीं हो पा रहे है। एक खेमा अलग दल बनाने के लिए माहौल बना रहा है तो भाजपा में शामिल होने की लाबिंग करने वाले भी कम नहीं। वहीं, कुछ समर्थक कांग्रेस के नजदीकी बढ़ाने के तर्क गिना रहे हैं। कांग्रेस से मेल करने की पैरोकारी करने वालों का कहना है कि भाजपा में उन्हें पर्याप्त सम्मान नहीं मिल सकेगा और समर्थकों को भी टिकट दिलाने का संशय रहेगा।
इस ऊहापोह की स्थिति में उलझे स्वामी प्रसाद एक जुलाई को अपेक्षित भीड़ न जुटा सके तो किरकिरी होगी। इसलिए तोलमोल करने से पहले स्वामी समर्थक पूरी ताकत से सम्मेलन को सफल बनाने में जुटे हैं। सूत्रों का कहना है कि भाजपा व कांग्रेस नेता भी स्वामी प्रसाद के सम्मेलन पर नजर लगाए है। सम्मेलन कामयाब रहेगा तब ही स्वामी को साथ में लेने का फायदा होगा।
उधर, स्वामी को पार्टी में शामिल कराने के संदर्भ में जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह आना तो चाहें। शाह ने कहा कि स्वच्छ और संघर्षशील छवि के लोगों को भाजपा जरूर अवसर देगी। जागरण फोरम में आए अमित शाह से जब यह बात उठी कि स्वामी प्रसाद मौर्य के बगावत की मायावती को भनक नहीं लगी वरना उन्हें बाहर कर देती तो अमित शाह का कहना था कि मायावती बहुत दिन से स्वामी का तेवर देख रही थी लेकिन वह स्वामी प्रसाद को बाहर निकालने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।
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